कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त राजस्थान की जनता में आक्रोश की चिंगारी लम्बे अर्से से सुलग रही थी। इस चिंगारी को हवा देने का काम किया भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वसुन्धरा राजे ने। कांग्रेस के सुदीर्घ कुशासन ने जनता को इतना असहाय और लाचार बना दिया कि उनको दो समय की रोटी के लिये भी संघर्ष करना पड़ रहा था। जनता ने भाजपा को इतना प्रचण्ड बहुमत देकर इस प्रकार की त्रासदियों से मुक्त होने की अभिलाषा अपने मताधिकार के द्वारा प्रकट की है।
गहलोत का पिछले पांच वर्षो का मुख्यमंत्रीत्व काल इतना विवादास्पद और कुशासन को बढ़ाने वाला ही रहा है। हां इतना अवश्य है कि गहलोत ने समाज के हर वर्ग को वायदों का एक-एक झुंझुना अवश्य थमा दिया था। सरकार साढ़े चार वर्षो तक तो सोती रही और आखिर पांच-छ: महिनों में घोषणाओं का अलादीन रूपी चिराग निकाला जिससे कुछ सीमा तक तो यह आशा रही कि सरकार कुछ करेगी किंतु घोषणाओं के बाद जब उनकी क्रियान्विति देखी तो सभी लोग हतप्रभ रह गये। यह सब जनता के साथ छलावा था। गहलोत सरकार ने सरकारी अस्पतालों में कई तरह की लेबोरेट्री जांचें नि:शुल्क कर दी। पर अस्पतालों में ऐसा कोई तंत्र विकसित नहीं किया जो इन घोषणाओं को अमली जामा पहना सके। परिणाम यह हुआ कि मरीज अस्पतालों में इधर-उधर धक्के खाते फिरे उनकी जांच नहीं हो पाई और जिन भाग्यशालियों को जांच का अवसर मिला तो उनकी रिर्पोटों में हेरा-फेरी हो गई। आक्रोश पनपा कि झूठी घोषणायें कर जनता को मूर्ख क्यों बनाया जा रहा है। यहीं परिणिति नि:शुल्क दवा योजना की हुई। चिकित्सक मरीजों को जो दवा लिखते वे दवायें हॉस्पिटल द्वारा उपलब्ध ही नहीं कराई जा रही थी। इससे बुरा मजाक मरीजों के लिये और क्या हो सकता था।
कांग्रेस राज में बेहताशा बढ़ी मंहगाई से भी जनता इतनी परेशान थी कि मजदूरी करने वाले परिवार को दो समय की सूखी रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। मंहगाई का ग्राफ दिन प्रतिदिन सुरसा के मुॅह की तरह बढ़ता जा रहा था यहां तक कि रोटी के साथ प्याज खाना भी दूभर हो गया था। प्याज के भाव सेब के भाव से भी अधिक हो गये थे। इस पर कांग्रसी नेताओं द्वारा सांत्वना के बोल तो नहीं बोले गये उल्टे ये कहकर जले पर नमक छिड़का कि अब लोग दो-दो सब्जियां खाने लगे इस कारण सब्जियों के भाव में बढ़ोतरी हुई है। सरकार ने बयान देकर मंहगाई पर नियंत्रण करने जैसे किसी भी उपाय की घोषणा न करके मौन रह कर जनता को ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया। यह किसी लोक जनकल्याणकारी सरकार का कार्य नहीं हो सकता है। जनता को सांत्वना तो कम से कम देते। सरकार की इस प्रकार की संवेदनहीनता पर लोगों का गुस्सा होना जायज ही था। जनता जानती थी कि लोकतंत्र के पर्व में अब अधिक समय नहीं है इस प्रकार के कुशासन को हटाने का संकल्प मन ही मन किया और विधानसभा के चुनावों में इसका बदला लेकर भाजपा को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाकर भाजपा में विश्वास व्यक्त किया कि यह सरकार समाज के हर वर्ग की भलाई के लिये काम करेगी। इस सरकार के प्रति जनता की अपेक्षायें बढ़ गई है।
कांग्रेस की नीतियों ने 67 वर्ष पश्चात् भी देश की जनता को इस कदर मोहताज बना दिया कि वह नि:शुल्क दवा, दो रुपए किलो गेंहू, वृद्घावस्था पेंशन, वरिष्ठ नागरिक तीर्थयात्रा, महिलाओं को यात्रा में छूट जैसी सुविधाओं पर आश्रित रहे। दलित, अल्पसंख्यक, मजदूरों को भी लालीपाप देकर भरमाया ही गया था। मजदूर और खेतीहर मजदूर आज मनरेगा जैसी योजनाओं की अफीम से इतनें ग्रस्त हो गये है कि वे अन्य कहीं काम ही नहीं कर सकते। उनका स्वावलम्बन और स्वाभिमान खोता जा रहा था। इसी बीच नरेन्द्र मोदी और वसुंधरा राजे ने लोगों के आत्मविश्वास को जगाया और उन्हें आ"ान किया कि स्वावलम्बन और स्वाभिमान के लिये उठ खड़े हो और इस प्रकार की सरकार को उखाड़ फेकें। हवा ऐसी चली की तूफान बन गई और इस तूफान में कई वटवृक्ष धाराशायी हो गये और वसन्धुरा राजे में विश्वास व्यक्त कर भाजपा को अकल्पनीय बहुमत दे डाला जिससे भाजपा नेता और स्वयं वसुन्धरा राजे भी अचम्भित है।
इस जनादेश का यह अभिप्राय कतई नहीं है कि भाजपा सरकार भी जनता के साथ किये वायदे एक कोने में डाल दे और चार-साढ़े चार साल बाद उनको निकाल कर कांग्रेस की तरह ही लोग लुभावनी घोषणा करें। यदि यह सरकार भी जनता के विश्वास को रोंधा तो उसकी हालत भी अगले चुनावों में कांग्रेस जैसी ही होगी। अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने वाले है। भाजपा जानती है कि यदि अभी से जनहित के कार्य नहीं किये तो 25 सांसद के लक्ष्य को सहज में ही पलीता लग जायेगा इसलिये वसुंधरा चाहती है कि वास्तव में त्रस्त जनता को राहत दी जानी चाहिये जिससे भाजपा की छवि लोकरंजन एवं लोक कल्याणकारी सरकार की बन सके। इसीलिये तो वसुंधरा ने शपथ ग्रहण से पूर्व ही अपना 100 दिवसीय एजेंडा तय सा कर आधिकारियों को इसमें लग जाने के संकेत दे दिये है। वसुंधरा राजे ने जनता को गुड गवर्नेस देकर हर क्षेत्र में जनता को राहत देने का एक्सन प्लान बना लिया है। भाजपा सरकार अगले वर्ष होने वाले लोकसभा के चुनावों को ध्यान में रखकर निश्चित समय सीमा के अन्तर्गत जनता के साथ किये गये वायदों में से कुछ का पूरा कर जनता को यह संदेश देना चाहती है कि यह सरकार जन आंकाक्षाओं के अनुरूप कार्य करेगी। वसुंधरा राजे ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में घरेलु उपभोक्ता को 24 घंटे बिजली देने की बात कहीं वहीं कृषि के लिये आठ घंटों तक बिजली मुहय्या करवाने की घोषणा की थी। उसे पूरा करने में अपना जोर लगायेगी। इसी तरह युवाओं एवं बेरोजगारों के साथ किये वादे के अनुसार विभिन्न सरकारी विभागों में अटकी 70 हजार नौकरियों के लिये आई रूकावट को दूर करने संबंधी कार्यवाही की जायेगी। नि:शुल्क दवा योजना में आ रही खामियों को दूर कर ढांचागत सुविधा बढ़ाने की दिशा में कार्य करना है। मंहगाई पर नियंत्रण करने के लिये कार्ययोजना बनाने के साथ ही साथ ढांचागत सुविधायें बढ़ाकर उद्योगोंं को प्रोत्साहित करना है जिससे निजी क्षेत्र में भी रोजगार के सुनिश्चित अवसर उपलब्ध हो सके। शिक्षा में सुधार विशेषकर महिला शिक्षा व्यवस्था में सुधार आरटेट जैसी व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं को दूर करना, ग्राम पंचायत स्तर पर सार्वजनिक प्रकाश की व्यवस्था और सफाई व्यवस्था करना, ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल हेतु कार्य करना। सरकारी कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों को दूर करने जैसे कार्याे को प्राथमिकता पर लिया गया। इसके साथ ही साथ सामाजिक, आर्थिक न्याय, की सुदृढ़ व्यवस्था की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है। भाजपा अपने 100 दिन के शासन के लिये जो कार्यरेखा तैयार कर रही है उसे यदि ईमानदारी से लागू कर दिया जायेगा तो जनता में विश्वास बढ़ेगा और इसी प्रकार के विश्वास को जनता लोकसभा के चुनावों में बहुमत देकर प्रदर्शित करेगी।
भाजपा को मिले इस प्रचंड बहुमत के गर्भ में बहुत ही अनकही चुनौतियां भी है जिन्हें पार लगना भाजपा का नैतिक दायिव है। वसुंधरा राजे का यह कार्यकाल जैसा कि उन्होंने अपनी सुराज यात्रा के दौरान स्थान-स्थान पर कहा था कि वह जनता को स्वच्छ सुशासन देगी। उन्हें अपनी घोषणाओं के अनुरूप कार्य कर यह दिखाना चाहिये कि उनके कहने और करने में समानता है।
गहलोत का पिछले पांच वर्षो का मुख्यमंत्रीत्व काल इतना विवादास्पद और कुशासन को बढ़ाने वाला ही रहा है। हां इतना अवश्य है कि गहलोत ने समाज के हर वर्ग को वायदों का एक-एक झुंझुना अवश्य थमा दिया था। सरकार साढ़े चार वर्षो तक तो सोती रही और आखिर पांच-छ: महिनों में घोषणाओं का अलादीन रूपी चिराग निकाला जिससे कुछ सीमा तक तो यह आशा रही कि सरकार कुछ करेगी किंतु घोषणाओं के बाद जब उनकी क्रियान्विति देखी तो सभी लोग हतप्रभ रह गये। यह सब जनता के साथ छलावा था। गहलोत सरकार ने सरकारी अस्पतालों में कई तरह की लेबोरेट्री जांचें नि:शुल्क कर दी। पर अस्पतालों में ऐसा कोई तंत्र विकसित नहीं किया जो इन घोषणाओं को अमली जामा पहना सके। परिणाम यह हुआ कि मरीज अस्पतालों में इधर-उधर धक्के खाते फिरे उनकी जांच नहीं हो पाई और जिन भाग्यशालियों को जांच का अवसर मिला तो उनकी रिर्पोटों में हेरा-फेरी हो गई। आक्रोश पनपा कि झूठी घोषणायें कर जनता को मूर्ख क्यों बनाया जा रहा है। यहीं परिणिति नि:शुल्क दवा योजना की हुई। चिकित्सक मरीजों को जो दवा लिखते वे दवायें हॉस्पिटल द्वारा उपलब्ध ही नहीं कराई जा रही थी। इससे बुरा मजाक मरीजों के लिये और क्या हो सकता था।
कांग्रेस राज में बेहताशा बढ़ी मंहगाई से भी जनता इतनी परेशान थी कि मजदूरी करने वाले परिवार को दो समय की सूखी रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। मंहगाई का ग्राफ दिन प्रतिदिन सुरसा के मुॅह की तरह बढ़ता जा रहा था यहां तक कि रोटी के साथ प्याज खाना भी दूभर हो गया था। प्याज के भाव सेब के भाव से भी अधिक हो गये थे। इस पर कांग्रसी नेताओं द्वारा सांत्वना के बोल तो नहीं बोले गये उल्टे ये कहकर जले पर नमक छिड़का कि अब लोग दो-दो सब्जियां खाने लगे इस कारण सब्जियों के भाव में बढ़ोतरी हुई है। सरकार ने बयान देकर मंहगाई पर नियंत्रण करने जैसे किसी भी उपाय की घोषणा न करके मौन रह कर जनता को ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया। यह किसी लोक जनकल्याणकारी सरकार का कार्य नहीं हो सकता है। जनता को सांत्वना तो कम से कम देते। सरकार की इस प्रकार की संवेदनहीनता पर लोगों का गुस्सा होना जायज ही था। जनता जानती थी कि लोकतंत्र के पर्व में अब अधिक समय नहीं है इस प्रकार के कुशासन को हटाने का संकल्प मन ही मन किया और विधानसभा के चुनावों में इसका बदला लेकर भाजपा को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाकर भाजपा में विश्वास व्यक्त किया कि यह सरकार समाज के हर वर्ग की भलाई के लिये काम करेगी। इस सरकार के प्रति जनता की अपेक्षायें बढ़ गई है।
कांग्रेस की नीतियों ने 67 वर्ष पश्चात् भी देश की जनता को इस कदर मोहताज बना दिया कि वह नि:शुल्क दवा, दो रुपए किलो गेंहू, वृद्घावस्था पेंशन, वरिष्ठ नागरिक तीर्थयात्रा, महिलाओं को यात्रा में छूट जैसी सुविधाओं पर आश्रित रहे। दलित, अल्पसंख्यक, मजदूरों को भी लालीपाप देकर भरमाया ही गया था। मजदूर और खेतीहर मजदूर आज मनरेगा जैसी योजनाओं की अफीम से इतनें ग्रस्त हो गये है कि वे अन्य कहीं काम ही नहीं कर सकते। उनका स्वावलम्बन और स्वाभिमान खोता जा रहा था। इसी बीच नरेन्द्र मोदी और वसुंधरा राजे ने लोगों के आत्मविश्वास को जगाया और उन्हें आ"ान किया कि स्वावलम्बन और स्वाभिमान के लिये उठ खड़े हो और इस प्रकार की सरकार को उखाड़ फेकें। हवा ऐसी चली की तूफान बन गई और इस तूफान में कई वटवृक्ष धाराशायी हो गये और वसन्धुरा राजे में विश्वास व्यक्त कर भाजपा को अकल्पनीय बहुमत दे डाला जिससे भाजपा नेता और स्वयं वसुन्धरा राजे भी अचम्भित है।
इस जनादेश का यह अभिप्राय कतई नहीं है कि भाजपा सरकार भी जनता के साथ किये वायदे एक कोने में डाल दे और चार-साढ़े चार साल बाद उनको निकाल कर कांग्रेस की तरह ही लोग लुभावनी घोषणा करें। यदि यह सरकार भी जनता के विश्वास को रोंधा तो उसकी हालत भी अगले चुनावों में कांग्रेस जैसी ही होगी। अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने वाले है। भाजपा जानती है कि यदि अभी से जनहित के कार्य नहीं किये तो 25 सांसद के लक्ष्य को सहज में ही पलीता लग जायेगा इसलिये वसुंधरा चाहती है कि वास्तव में त्रस्त जनता को राहत दी जानी चाहिये जिससे भाजपा की छवि लोकरंजन एवं लोक कल्याणकारी सरकार की बन सके। इसीलिये तो वसुंधरा ने शपथ ग्रहण से पूर्व ही अपना 100 दिवसीय एजेंडा तय सा कर आधिकारियों को इसमें लग जाने के संकेत दे दिये है। वसुंधरा राजे ने जनता को गुड गवर्नेस देकर हर क्षेत्र में जनता को राहत देने का एक्सन प्लान बना लिया है। भाजपा सरकार अगले वर्ष होने वाले लोकसभा के चुनावों को ध्यान में रखकर निश्चित समय सीमा के अन्तर्गत जनता के साथ किये गये वायदों में से कुछ का पूरा कर जनता को यह संदेश देना चाहती है कि यह सरकार जन आंकाक्षाओं के अनुरूप कार्य करेगी। वसुंधरा राजे ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में घरेलु उपभोक्ता को 24 घंटे बिजली देने की बात कहीं वहीं कृषि के लिये आठ घंटों तक बिजली मुहय्या करवाने की घोषणा की थी। उसे पूरा करने में अपना जोर लगायेगी। इसी तरह युवाओं एवं बेरोजगारों के साथ किये वादे के अनुसार विभिन्न सरकारी विभागों में अटकी 70 हजार नौकरियों के लिये आई रूकावट को दूर करने संबंधी कार्यवाही की जायेगी। नि:शुल्क दवा योजना में आ रही खामियों को दूर कर ढांचागत सुविधा बढ़ाने की दिशा में कार्य करना है। मंहगाई पर नियंत्रण करने के लिये कार्ययोजना बनाने के साथ ही साथ ढांचागत सुविधायें बढ़ाकर उद्योगोंं को प्रोत्साहित करना है जिससे निजी क्षेत्र में भी रोजगार के सुनिश्चित अवसर उपलब्ध हो सके। शिक्षा में सुधार विशेषकर महिला शिक्षा व्यवस्था में सुधार आरटेट जैसी व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं को दूर करना, ग्राम पंचायत स्तर पर सार्वजनिक प्रकाश की व्यवस्था और सफाई व्यवस्था करना, ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल हेतु कार्य करना। सरकारी कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों को दूर करने जैसे कार्याे को प्राथमिकता पर लिया गया। इसके साथ ही साथ सामाजिक, आर्थिक न्याय, की सुदृढ़ व्यवस्था की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है। भाजपा अपने 100 दिन के शासन के लिये जो कार्यरेखा तैयार कर रही है उसे यदि ईमानदारी से लागू कर दिया जायेगा तो जनता में विश्वास बढ़ेगा और इसी प्रकार के विश्वास को जनता लोकसभा के चुनावों में बहुमत देकर प्रदर्शित करेगी।
भाजपा को मिले इस प्रचंड बहुमत के गर्भ में बहुत ही अनकही चुनौतियां भी है जिन्हें पार लगना भाजपा का नैतिक दायिव है। वसुंधरा राजे का यह कार्यकाल जैसा कि उन्होंने अपनी सुराज यात्रा के दौरान स्थान-स्थान पर कहा था कि वह जनता को स्वच्छ सुशासन देगी। उन्हें अपनी घोषणाओं के अनुरूप कार्य कर यह दिखाना चाहिये कि उनके कहने और करने में समानता है।
-डॉ विनोद दीक्षित
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